दशावतार मंदिर
दशावतार मंदिर की अद्भुत कलाकारी देख आप मंत्रमुग्ध हुये नहीं रह सकते
ललितपुर मुख्यालय से मंदिर की दुरी करीब 32 किलो मीटर है ।
विंध्याचल की उपत्यकाओं में स्थित सौंदर्य और हरियाली से भरपूर छोटा सा गांव देवगढ़ कभी अज्ञात कलाकारों की कर्मस्थली रहा होगा । जिन्होंने अपने कौशल से अनूठी और खूबसूरत कलाकृतियां गढ़ी । कलकल करती हुयी बेतवा नदी के किनारे शाम के समय यह स्थान और भी खूबसूरत हो जाता है ।
देवगढ़ का नाम दशावतार कारण विश्व प्रशिद्ध हुआ । इस गुप्तकालीन मंदिर के द्वार शाखा काफी कलात्मक है । इसमें उकेरे गए दाम्पत्य प्रेम के दृश्य बड़े मार्मिक हैं । बीच बीच में सुन्दर पत बल्लरियां तथा बौनी आकर्तियो से गर्भ गृह के प्रवेश द्वार को और भी सुन्दर दाना देती हैं । ललाट बिम्ब पर शेषाशीन भगवान विष्णु की प्रतिमा अत्यंत भव्य एवं दर्शनीय है ।
दशावतार मंदिर पंचायतन प्रकार का मंदिर है । मंदिर के तीन ओर फलक अपना ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं । दक्षिण ओर शेषनाग आराम करते भगवान विष्णु हैं । इन मूर्तियों में दिखलाया गया है की भगवान विष्णु किस तरह से जब सृष्टि का विलय हो जाता है और उसी चक्रत घटनाक्रम में नयी सृष्टि का उदय होता है । यह सब बड़े सांकेतिक रूप में दिखलाया गया है । भगवान विष्णु शेषनाग के सहस्र फनो की छाया में लेते हुये हैं , लक्ष्मी जी उनका पैर दबा रही हैं । आकाश में इंद्र,ब्रह्मा ,शिव आदि देव अपने-अपने वाहनो से इस लीला को देख रहे हैं । नीचे पांच पुरुष और एक स्त्री की आकृति भी बानी हुयी है ।
दूसरी ओर “बद्रिकाश्रम” का दृश्य अंकित है । शेर और हिरन को साथ – साथ दिखाकर तपोभूमि का सात्विक वातावरण दिखलाया गया है । नर और नारायण दोनों ही तपो ज्ञान में डूबे हुए अलग अलग शिलाओं पर बैठे हुये मूर्ति बनायी गयी है ।
तीसरी तरफ मूर्तिकार ने तीन समानांतर रूप से मूर्ति को उकेरा है । जिसमे भगवन विष्णु गरुण पर विराजमान होकर नीचे उतर रहे हैं । आकाश की तरफ दो देवदूत एक विशिष्ट मुकुट लिये हुये हैं । गजराज की मूर्ति याचना की मुद्रा में भगवान विष्णु की तरफ देख रहे हैं ।
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